स्वैच्छिक विषय मेघा
मेघों मेंं जाकर छिप गया है चांद मेरा रात मे
फिर से कटेगी रात मेरी आंसुओं के साथ में।
तन्हाइयों हैं बेबसी है रात काले नाग सी,
कैसे बचूंगा मैं भला इस कातिलाना घात में।
चारागरो के पास में मेरे वास्ते कुछ भी नहीं
मेरा इलाजे गम रहे उसकी निगाहे शाद में।
चूड़ी में तेरी बात रंग जैसे धनक हो बांह में
रोकूं भला कैसे बता मैं फंस गया जज़्बात में।
कैसे भला वो आ सकेगा रात है बेहाल सी,
बरसे घटा है ज़ोर से आंधी चले बरसात में।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Shashank मणि Yadava 'सनम'
23-Jul-2023 10:11 AM
खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति
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Reena yadav
22-Jul-2023 01:18 PM
👍👍
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Abhinav ji
22-Jul-2023 09:34 AM
Very nice 👍
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